भाजपा के 37 वर्ष

आज से 37 वर्ष पूर्व 6 अप्रैल 1980 को श्री अटल बिहारी बाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी जी ने, जब जय प्रकाश समग्र क्रांति विफल हो चुकी थी और 1977 में उनके द्वारा स्थापित जनता पार्टी ताश के पत्तों की तरह बिखर चुकी थी, तब अपनी पुरानी राजनीतिक परम्परा को पुर्नजीवित करते हुये भारतीय जनता पार्टी की नीव रखी । यह वह समय था जब कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं बचा था और विपक्ष के सभी दल छोटे छोटे टुकड़ों में टूट चुके थे। भारतीय असमिता का एक संकट राजनैतिक क्षेत्र में उत्पन्न हो गया था। लगता नहीं था कि अब इस देश में कांग्रेस की तानाशाही और परिवारवाद को रोकने में कोई सक्षम होगा। एक तरह से भारत के राजनैतिक क्षितिज में निराशा और अंधकार छा गया था। कोई उजाला कहीं नजर नहीं आ रहा था। सत्ता के बिखरे हुये टुकड़ो से चिपके हुये देश के सभी दलों के नेता श्रीहीन और निश्तेज हो चुके थे। तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपनो का एक भारत खोजने के लिये भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ था। उस समय नवउदित भारतीय जनता पार्टी के अग्रदूत श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने हिन्द महासागर के तट पर खड़े हो कर कहा था ‘‘अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा’’ उनके विश्वास भरे अंदाज को उस समय के लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया था। कांच की चुड़ियों की तरह बिखरे हुये अस्तित्व को पुनः एक आकार देना असंभव सा लग रहा था, लेकिन अटल जी की आवाज में उनकी वर्षाें की साधना और संकल्प था। जो उन्हें मात्र बीस वर्ष में ही न केबल देश के शीर्ष पर पहुँचाया अपितु भारतीय राजनीति ने जो करवट ली उसे विश्व ने सलाम किया । 24 दलों की सरकार लेकर अटल जी चले थे। तब तक मिली जुली सरकारों का कोई भविष्य नजर नहीं आता था, लेकिन उनका संकल्प सफल हुआ और जो नीव उन्हांेने 20 वर्ष पहले रखी थी। वह लाला किले के शिखर तक पहुँच चुकी थी। अब उस चिंगारी को एक सूरज के रूप में बदलना था, जो न केवल भारत का भविष्य बन सके अपितु विश्व में लोकतंत्र का विश्वास भी पैदा कर सके। नारा लगता था, भाजपा के तीन धरोहर अटल, अडवाणी, मुरली मनोहर और उस नारे के नीचे देश के वह तमाम कार्यकरता जो अपनी रोटी, मकान और कपड़े के लिये नहीं बल्कि भारत माता के वैभव को शिखर तक पचहुँचाने के लिये जूझ रहे थे। उन्हे अवसर मिला और वर्षों से चली आ रही अंग्रेजो की गुलामी की वह श्रृंखला जो कांगे्रस ढो रही थी। उसको तोड़ कर फेक देने की अपूर्व क्षमता देश में दिखाई पड़ने लगी । राम जन्मभूमि के आंदोलन ने उस अभियान को गति दी और देश में परिवर्तन का नारा गूँजने लगा। मंदिर निर्माण के लिये जुटे हुये लोग राष्ट्र निर्माण के इस पवित्र यज्ञ के ़ऋतिक और पुरोधा बने। आज भारत जिस खुली हवा में सांस ले रहा है, वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय और पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संकल्पों का वह आसमान है जिसमें सबके साथ सबके विकास की घोषणायें हो रही है। सर्वे भवन्तु सुखिना का संकल्प आज प्रत्येक भारतीय के मन में जगाने की कोशिश कामयाब होती दीखाई पड़ रही है।
इन 37 वर्षों में जनसंघ के दीये (दीपक) को जलाये रखने में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी कामयाबी मिली है। आंधी ओैर झंझाओं ने उस दीपक को बुझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन आस्था का वह दीपक न केबल उन आंधियों को झेलने में सफल रहा बल्कि आज कमल के रूप में सबके मन का विश्वास बन चुका है । इंदरा जी के बलिदान ने मर चुकी कांग्रेस को एक बार पुनः न केबल जीवित कर दिया, अपितु राजीव गांधी के नेतृत्व में एक मजबूत राजनैतिक ताकत के रूप में खड़ा कर दिया, लेकिन देश का वह सर्मथन न राजीव गांधी को मिला था न कांग्रेस को वह इंदरा जी के हत्यारों को एक कठोर जबाव था। देश को उम्मीद थी कि राजीव गांधी सहानुभूति के इस समर्थन को एक स्थिर आधार दे पायेंगे और कांग्रेस की अब तक की गलतियों से उपर उठकर एक नये भारत के निर्माण में गांधी लोहिया दिनदयाल के सपनों को समेटते हुये एक सर्वग्राहे राजनैतिक शक्ति का निर्माण करेंगे, लेकिन वह वैसा कुछ न कर सके और कांग्रेस के चंपुओं ने जो देश को डुबोने के लिये अपनी हरकतों से कभी बाज नहीं आये और राजीव गांधी को घेर लिया। 84 का ऐतिहासिक परिणाम कांग्रेस के पक्ष में 5 वर्ष भी नहीं टिक सका और 89 आते आते कांग्रेस पुनः वहीं पहँुच गई जहां से उसके पतन की शुरूआत हुई थी। इस बीच देश में अनेकों प्रयोग हुये गठबंधन बने मिली जुली सरकारें बनी लेकिन 1998 आते आते 84 में जिस दल को लोक सभा में मात्र 2 सीटंे मिली थी। देश की सबसे बड़ी पार्टी बन गयी और अटल जी ने उसका नेतृत्व अपने मजबूत हाथों में लेकर देश की सुरक्षा और स्वाभिमान के लिये उत्पन्न हर चुनौति का सामना करने के लिये न केबल आगे आये बल्कि विश्व में उनकी आवाज सुनी और आतंकवाद तथा गरीबी के खिलाफ उन्हें अपना नेता स्वीकार किया। 2004 तक उन्होंने विश्व के सामने लोकतांत्रिक शासन का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया। देश के दुश्मन उनके सामने घुटने टेकने को बाध्य हुये। लेकिन 2004 में एक बार फिर एक झटका लगा और देश के विदेशी दुश्मनों की सांझी मुहिम ने एक बार भाजपा को पुनः सत्ता से बाहर कर दिया। अटल अडवाणी वृद्ध हो चुके थे। पार्टी को एक नये विकल्प की तलाश थी उसके अभाव में दस वर्षों तक भाजपा पुनः संघर्षों के थपेडे़ झेलती रही और समय की लहरों के उतार चढ़ाव पर अपनी किस्ती को लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करती रही। इस बीच फिर एक बार मिली जुली सरकारों का दौर चल पड़ा जिसका लाभ कुछ व्यक्ति और परिवार उठाते रहे और देश में राष्ट्रीय विचारधारा की मजबूत पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी अपने को सम्भालने और सबांरने में लगातार प्रयत्नशील रही। देश को जिस मजबूत नेतृत्व की तलाश थी पहले की तरह गुजरात ने उस कमी को पुनः पूरा कर दिया गांधी और पटेल के बाद देश को नरेन्द्र मोदी जी के रूप में मजबूत विकल्प मिला । गुजरात के मुख्मंत्री के रूप में उनके दस साल लोगों को उनको समझने के लिये पर्याप्त आधार दिया। हिसंा सपं्रदायिकता गरीबी जैसे मुददे उनके सामने टिक नहीं सके और एक पिछडे़ हुये राज्य को अपने शासन में एक विकसित आत्म निर्भर और स्वाभिमानी प्रदेश के रूप में गुजरात को खड़ा करके उन्होंने स्वयं को साबित कर दिया। अब भाजपा और देश के उन तमाम राष्ट्रवादी लोगों को एक भरोसा मोदी के रूप में दिखने लगा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा तमाम उन दूसरे संगठनों ने तय कर लिया कि अब हम मोदी के नेतृत्व को मजबूत करने के लिये कोई कमी नहीं रहने देंगे। आसमान में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा गूँजा और अमित शाह जैसे एक बिल्कुल नये व्यक्ति के आहवाहन पर जाति-पति, पंत, मजहब, भाषा और क्षेत्र की दीवारे तोड़ कर लोग मोदी जी के पीछे खड़े हो गये। यहां तक अटल, अडवाणी, मुरली मनोहर जी ने भी अपने तप और साधना की समग्र उर्जा मोदी जी को सांैप दी देश ने करवट ली और 2014 के आम चुनाव ने भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगियो के साथ अपनी सरकार बनाने में सफल हुई । चारो ओर निराशा और अंध विश्वास का अंधेरा छटने लगा एक के बाद एक प्रातों में भाजपा की सरकारें बनने लगी और ये सिलसला जो शुरू हुआ वह लगातार आगे बढ़ रहा है । आज त्रिपुरा नगालैण्ड और मेघालय जैसे प्रांतों में जहां भाजपा का खाता भी नहीं खुलता था वहां पूर्ण बहुमत की उसकी सरकारें हैं। तमाम प्रांतों में उसके अपने मुख्यमंत्री राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष और केन्द्र में उसके अपने राष्ट्रपति हैं ।
आज की छुटपुट घटनाओं अथवा जय पराजयों से हमें भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं हम इस मजबूत राष्ट्र के सजग प्रहरी हैं। विपक्ष का कोई भी मनसूबा किसी भी गठबंधन महागठबन्धन के भ्रम में अब देश को गुमराह नहीं कर सकता। आज हर मोर्चें पर भाजपा की सरकारें सफलता प्राप्त कर रही हैं। बदलाव के इस दौर में कुछ परेशानिया जरूर पैदा हुई लेकिन जब कभी पुराने कण्डहर को नये भवन की सक्ल देनी होती है और दीवारे टूटती है तो धूल और धमाका तो होता ही है । हमे विश्वास है कि देश के सामने चाहे राम का मंदिर हो अथवा गंगा का अविरल प्रवाह कश्मीर की समस्या हो अथवा देश की सुरक्षित सीमायें अब चिंता का विषय नहीं हेै। संगठित अपराध और लोक शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेकने की प्रक्रिया प्रगति पर है। देश और प्रदेश के नेतृत्व की ओर लोग आशा भरी नजरों से देख रहे हैं भाजपा को उस आशा को विश्वास में बदलना है। सरकार और संगठन में तालमेल की जरूरत है समाज के आंतरिक असुरक्षा और देश की सीमाओं की चिंता करनी है। कुछ लोग देश के अमन में आग लगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह सफल नहीं होगें क्यांेकि हम में, हमारी नियत में कोइ खोट नहीं है। हम एक जुट हैं और राष्ट्र निर्माण के इस महायज्ञ में पहले से कहीं अधिक सक्रिय और एक जुट होकर भारत माता को परम वैभव तक पहुँचाने में पूरी शक्ति लगा देंगे