माँ गंगा

बैसाख शुक्ल पक्ष पर्वों और त्योहारों का पक्ष है। अक्षय तृतीया परशुराम जयंति शंकराचार्य जयंति फिर आज गंगा दशहरा। देश को पुरखों पूर्वजों और आस्था के पुरातन प्रतिकों को नमन करने का एक सुखद संयोग है। आज के दिन गंगा जी भगवान शंकर की सघन जटाओं से निकल कर गोमुख में पहली बार इस भूतल को स्पर्श किया था। राजा भगीरथ का तप पूर्ण हुआ था और धरती को स्वर्ग की सौगात गंगा मिली थी। गंगा की यात्रा गोमुख से नहीं भगवान विष्णु के श्रीचरणों से प्रारम्भ होती है जब दैत्यराज बलि के द्वार पर वामन बनकर याचना हेतु भगवान पधारे थे और राजा बलि ने उन्हें अपना सर्वस्व दान देकर के भी उनको संतुष्ट नहीं कर पाये थे क्योंकि भगवान ने राजा बलि से अपने निवास हेतु तीन पग भूमि मांगी थी राजा बलि ने उनके पराक्रम और प्रताप को जानते हुये भी अनभिज्ञ साधक की तरह उनको वचन दे दिया था यद्यपि शुक्राचार्य नहीं चाहते थे कि राजा यह वचन इन वटुक बालक को दें लेकिन उदार बलि ने अपनी दानशीलता का सम्मान करते हुये तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। दान पाकर भगवान वामन वामन नहीं रहे वह त्रिविक्रम हो गये और तीन पगों से तीनों लोक को नाप लिया। दान की दक्षिणा में शेष भूमि की जब मांग की तब राजा बलि ने अपना शरीर ही भगवान को समर्पित कर दिया इस लीला क्रम में जब भगवान त्रिविक्रम के चरण ब्रह्म लोक पहुंचे थे तब ब्रहमाजी ने उन्हें धोकर अपने कमण्डल में सुरक्षित रख लिया। राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रहमा जी ने अपने कमण्डल में सुरक्षित भगवान विष्णु के चरणामृत को गंगा के रूप में भगीरथ को सौंपा था। उस समय का एक रोचक प्रसंग है गंगा जी मृत्युलोक में आने को तैयार नहीं थी ब्रहमा जी से उन्होंने कहा कि मृत्युलोक में जाकर क्या मेरी पवित्रता और निर्मलता सुरक्षित रहेगी मृत्युलोक की मानव जाति स्वभाव से वितृति परायण है और वह हमारी पवित्रता को अपनी संस्कार हीन प्रवृत्तियों के कारण प्रदुषित करेगा तो उससे मेरी रक्षा कौन करेगा ब्रहमा जी ने कहा देवी गंगा तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। धरती पर लोक संस्कृति को अपने तप त्याग और ब्रहम ज्ञान से निरंतर पावनता प्रदान करने वाले परिव्राजक संत तुम्हारी पवित्रता की भी रक्षा करेंगे और गंगा ने धरती पर विचरण करने वाले पूज्य संतांे पर भरोसा करके धरती पर उतरना स्वीकार किया था। वरदान पाकर हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण गंगा जब तीव्र गतिमान भगीरथ के पीछे चली तो उनकी धारा में इतना वेग था कि धरती कम्पायेमान हो उठी लगा कि गंगा की लहरों में सृष्टि सिमट जायेगी तब राजा भगीरथ भगवान शिव की शरण में गये और गंगा के इस बेग को रोकने की प्रार्थना की भगवान शंकर ने बिना किसी बिलम्ब के गंगा को अपने शीश पर ले लिया और धरती पर उतरने के पहले एक बार वह पुनः भगवान शंकर की जटाओं में उलझ कर लुप्त सी हो गई फिर भगीरथ ने भगवान शंकर से उनको मुक्त करने का अनुरोध किया और भगवान शंकर की जटाओं से तीन धारायें निकली एक आकाश को चली गई दूसरी पाताल को चली गई और तीसरी गोमुख पर पहली बार उनका अवतरण हुआ। गंगा वहां उतरी तो लेकिन रूकी नहीं और वह भारत की भूमि को पावनता प्रदान करने के लिये गोमुख से गंगोत्री और पंच प्रयागों को तीर्थत्व प्रदान करते हुये हिमालय की पवित्र उत्तपति हरिद्वार की हर की पैड़ी पर 33 दिनों में ज्येष्ठ शुक्ल दसमी को उतरी और वह दिन गंगा दशहरा के नाम से एक पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया।
इस तरह गंगा ब्रहमा ,विष्णु महेश तीन दिव्य शक्तियों से पवित्रता की असीम उर्जा प्राप्त कर धरती पर उतरी थीं। गंगा जल की पवित्रता का सबसे बड़ा कारण यही है कि वह सृष्टि के त्रिदेवों को अपने में समाहित कर सृष्टि को पावनता प्रदान करती है। आज जब हम गंगा जल में डुबकी लगाते है तो सिर पर जल का प्रवाह ही नहीं होता बल्कि त्रिदेवों के चरण साधक के शीश पर होते है ऐसा नैसर्गिक उर्जा का लाभ अनायास उस साधकों प्राप्त हो जाता है जो गंगा में स्नान करता है ।
गंगा का जल अस्वच्छ और प्रदुषित तो हो सकता है लेकिन अपवित्र नहीं । गंगा जल में बढ़ता हुआ प्रदुषण जन जीवन में व्याप्त भौतिक विलासिता के कारण है। इसकी निर्मलता को प्राप्त करने के लिये केवल भौतिक साधनों से काम नहीं चलेगा इसके लिये तटवर्ती वासिंदों को पवित्र मन से गंगा की निर्मलता की नित्य साधना करनी होगी। गंगा हमारे पाप रूपी मैल को धोने हमारी जड़ता को दूर करने और लोक जीवन में व्याप्त गंदगी को बंदगी में बदलने के लिये आई है किसी भी भारतीय संप्रदाय की पूजा पद्धति में गंगा की उपस्थित अनिवार्य है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत जीवन की जिस राह पर चलकर जाने अनजाने पाप के भागी बनते है उन पापों का प्रक्षालन मां गंगा के सानिध्य में सहज हो जाता है ।
आज यह एक बड़ा प्रश्न देश के समाज और शासन के सामने है गंगा की इस खोई हुयी निर्मलता को पुनः कैसे प्राप्त किया जाये मैं कहना चाहुंगा कि उसे प्राप्त करने के लिये केवल भौतिक उपयों की ही नहीं बल्कि अध्यात्मिक निष्ठा की भी जरूरत है मुझे विश्वास है हमारे देश का नेतृत्व आज जिन हाथों में है वह अध्यात्मनिष्ठ हैं और उन्हें मां गंगा की कृपा अवश्य प्राप्त होगी उनको गंगा शक्ति दे मां गंगा को प्रणाम।