लॉकडाउन

42 दिनों की लम्बी छुट्टी के बाद आज शहर मुखरित हो रहा है। 22 मार्च के जनता कफ्र्यूू से लेकर कल तक के लाॅकडाउन में शाहजहांपुर की सभी गतिविधियां शून्य सी हो गई थी। यद्यपि कोरोना के कहर से जब विश्व त्राही त्राही कर रहा है तब शाहजहांपुर अपने को सभांलने में लगभग सफल रहा। एक विदेशी व्यक्ति के अतिरिक्त जनपद में कोई संक्रमित नहीं पाया गया। जिला प्रशासन ने जिस तत्परता और जिम्मेदारी के साथ लाॅकडाउन लागू किया उसी का परिणाम है कि आज शाहजहांपुर ग्रीन जोन में है। सभी जन प्रतिनिधियों शासकीय अधिकारियों और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इस चुनौति का डटकर सामना किया। प्रभावित परिवारों को राहत बांटने में और आहत मरीजों को उचित चिकित्सा देने में शासन प्रशासन ने पूरी रूचि ली। सामाजिक कार्यकरताओं ने भी उदार मन से बिना किसी भेदभाव के शासकीय निर्देशों के अनुरूप राहत सामग्री बांटने और पीड़ित प्रभावित लोगों को मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज जनपद राहत की सांस ले रहा है गरीब मजदूर से लेकर छोटे व्यापारी और दुकानदार आज अपने अपने काम पर दिखाई पड़ रहे है। नगर में चहल पहल है केवल शिक्षा संस्थायें और धर्मस्थान जरूर सूने और शांत हैं। इनको सक्रिय करने में सरकार की ओर से कोई निर्देश मिलता नजर नहीं आ रहा जबकि आधी अधूरी परीक्षाओं के सम्पन्न होने और जो परीक्षायें हो चुकी है उनकी कांपी जांचने में अब रूकाबट नहीं आनी चाहिये क्योंकि यदि जून तक सभी परीक्षायें नहीं हो सकी और परीक्षा परिणाम नहीं आ सके तो अगला शैक्षिक सत्र बुरी तरह प्रभावित होगा। शैक्षणिक गतिविधियों में लम्बी अवधि की ये शिथिलता एक बड़ी बाधा बनकर उपस्थित हुई है। इसके सुधार में प्रबन्ध और शिक्षकों को विद्यार्थियों के साथ पूरा सहयोग करना होगा और पटरी से उतर चुकी शिक्षण प्रशिक्षण की गतिविधि को पुनः सक्रिय और व्यवस्थित करने की तीव्र आवश्यकता है। मौसम बदल रहा है दिन को गरमी पड़नी शुरू हो गई है जिससे काम करने की अवधि पर भी प्रभाव पड़ सकता है फिर भी जो काम पिछड़ चुके है उनको पूरा करने के लिये अतिरिक्त श्रम और समय की आवश्यकता होगी।
लम्बे लाॅकडाउन ने देश और प्रदेश की जो आर्थिक छति हुई है वह तो एक गम्भीर प्रश्न है ही लेकिन छोटे व्यापारी दुकानदार मजदूर जो दिन प्रतिदिन की कमाई से ही अपना और परिवार का निर्वाह करते थे यह आर्थिक छति उनको परेशान करेगी इसलिये सरकार की ओर से जो भी राहत प्रभावित वर्ग को दी जा रही थी वह जारी रहनी चाहिये।
प्रदेश की योगी सरकार ने जिस दृढ़ता और हिम्मत के साथ इस महामारी का इलाज किया है वह सर्वथा सराहनीय है। दूरदर्शी मुख्यमंत्री ने कठोर निर्णय लेने के वाबजूद भी उन परिवारों और व्यक्तियों के प्रति पूरी संवेदना और सहानुभूति का वर्ताव किया है। प्रदेश से बाहर पढ़ने के लिये गये छात्र हों अथवा रोजी रोटी कमाने के लिये दूसरे प्रदेशों में गये मजदूर हों सबकी घर वापसी के लिये पूरा पूरा इंतजाम किया। हजारों हजार छात्र और मजदूर जो घरों से दूर रहने के लिये मजबूर हो गये थे उन्हें उनके घर तक पहंुचाने की जो पहल की उसे केन्द्र और देश के अन्य प्रांतीय सरकारों ने भी एक आदर्श के रूप में स्वीकार किया। सावधानी इतनी वर्ती गई कि जो लोग बाहर से लाये गये उन्हें क्वारंटाईन और आइसोलेट करने के लिये हर जिले और कस्बों में केन्द्र बनाकर इस महामारी से उन्हें बचाया गया। तबलीगी जमात के लोगों ने गड़बड़ न किया होता तो शायद प्रदेश आज पूरी तरह ग्रीन जोन में होता किन कारणों से जमातियों ने यह हरकत की यही जांच का विषय है और जांच होनी भी चाहिये क्योंकि इनकी बेवकूफी से पूरे मुस्लिम समाज को बदनाम होना पड़ा है। आज अगर लोग मुस्लिमों को शक की दृष्टि से देखतें है तो कुछ गलत नहीं है जैसे पंजाब के आतंकवाद के समय आम तौर लोग सिखों से डरने लगे थे वही कुछ स्थिति आज मुस्लिमों को लेकर है यह दूरी जो पैदा हुई है इसको भी दूर करना शासन समाज की पहली जिम्मेदारी है।
विश्व की बढ़ती हुयी जनसंख्या पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार चिंता व्यक्त की गई लेकिन उसका उचित समाधान नहीं मिल सका। प्रकृति इस कार्य को स्वयं कर रही है। जब मानवीय व्यवस्था इस बड़ी जिम्मेदारी को अंजाम नहीं दे पाती तब दैवी प्रकोप, युद्ध और महामारी ही ऐसी विनाशक विद्यायंे है जो विश्व की आवादी को संतुलित करतीं हैं। वैज्ञानिक उपायों और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बने संगठनों ने यद्यपि आवादी पर नियंत्रण पाने की कोशिश तो की लेकिन धार्मिक और सामाजिक कारणों से सफल नहीं हो सकी। सामाजिक अनुशासन और रहन सहन में आया परिवर्तन मानवीय संतुलन कायम नहीं रख सका और विश्व एक भीड़ में परिवर्तित हो गया। हर जगह एक भीड़ खड़ी हो गई और भीड़ में वैयक्तिक स्वाधीनता और निजता पर असर पड़ा जिससे आज इस महामारी को रोकने के लिये पूरे विश्व को घरों में कैद रहने और सोशल डिस्टेंसिंग के अनुपालन की जरूरत पड़ी।
हम हिंदुओं के रहन सहन में जो सावधानियां परम्परा से स्वाभाविक रूप में बरती जाती थीं उनको आधुनिक सभ्यता के नाम पर पीछे छोड़ कर बड़ी गलती की गई। जैसे हम हिंदुओं का अभिवादन हाथ मिलाकर हाथ चूमकर या आलिंगन करके नहीं होता था। हम दूर से हाथ जोड़ कर प्रणाम करते थे। अगर उस परम्परा को कायम रखते तो शायद इस महामारी का सामना करने में हमें दिक्कत न होती मांसाहार शराब का सेबन और सार्वजनिक जगाहों पर मलमूत्र का त्याग जहां तहां थूकने की आदत और मोहब्त के इजहार के नये तरीके भी इस महामारी में संकट के रूप में देखे गये। यदि हम अपनी पारम्परिक जीवनशैली में विश्वास करते तो शायद विश्व को एक सार्थक संदेश देने में कामयाब होते।
अभी लाॅकडाउन के 13 दिन बांकी है हमें थोड़ी बहुत जो छूट मिली है उसको आजादी के रूप में नहीं देखना चाहिये और अपनी स्वेच्छाचारिता से अनुशासन के इस प्रयोग को कमजोर नहीं होने देना चाहिये। जरूरी काम निपटायें लेकिन लाॅकडाउन का यथा संभव पालन करने की पूरी चेष्टा करे तो निष्चित ही कुछ समय मे ंहमे इस महामारी से छुटकारा मिल सकता है। वैसे जानकारों का मानना है कि यह बीमारी सितम्बर 2020 तक चल सकती है हम इस महामारी पर काबू कर सकेंगे ऐसा हमारा विश्वास होना चाहिये।