श्री सीताराम जी धरती और धर्म का संयोग

भारतीय लोकगाथाओं में रामकथा का अपना एक अनुठा स्थान है। हिन्दी, संस्कृत तथा अन्य भारतीय भाषाओं में रामकथा का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनेक भाषाओं में महाकाव्य, खण्ड काव्य और निबन्ध तथा लेख प्राप्त होते हंै। यहां तक कि भारतीय लोकसंस्कृति को भी जितना रामकथा प्रभावित करती है उतना अन्य कोई नहीं। लोकसंस्कृति के विभिन्न आयाम चाहें वह गीत संगीत, नृत्य नाटक अथवा किसी प्रकार का कोई साहित्य हो रामकथा की प्रभावी उपस्थिति हर जगह दिखती है। भगवान श्रीराम अयोध्या से लंका प्रस्थान करते हंै तो वह जिस पथ से होकर जाते हंै अपने पीछे उन क्षेत्रों की विभिन्न बोलियों और भाषाओं में एक रामायण छोड़ते जाते हंै। इस तरह देखने में आता है कि भारतीय जीवन मूल्यों पर भगवान श्री राम के आदर्शों का चाहे वह सामाजिक हो अथवा नैतिक प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई पड़ता है। सामाजिक संबधों में जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक अवसरों पर रामकथा की अनिवार्यता सी महसूस होती है इसलिये जब कभी भगवान श्रीराम की चर्चा होती है तो उनके जीवन के व्यापक संदर्भों का उल्लेख अनायास उपस्थित हो जाता है।
यद्यिप राम कथा के सभी प्रंसग रोचक प्रेरक और ज्ञान बर्धक हैं लेकिन उसके साथ साथ उनका अपना एक संदेश भी है जो समय के साथ घटने वाली हर घटना को छूती चलती है। भगवान श्रीराम का अवतार अयोध्या में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में और भगवती सीता का अवतार महाराज जनक के यहां मिथिला में होता है। दोनों उत्तर भारत के संस्कृति और आध्यात्मिक दृष्टि से गौरवशाली इतिहास रखते हंै। अयोध्या पर महाराज दशरथ और मिथिला पर विदेह राजा जनक का शासन है। दशरथ और विदेह दोनो शब्द अभिधा में भले अलग अलग प्रतीत होते हों लेकिन लक्ष्ण में दोनों शब्दों का अर्थ प्रायः एक ही होता है। एक का अपनी दस इंद्रियों पर नियंत्रण है तो दूसरा देह भाव से मुक्त विदेह है और राम का संबध दशरथ और विदेह से तो है ही दशानन से भी है जिसका अपनी इंद्रियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह इंद्रियासक्त और भोगी है जबकि दशरथ और विदेह ज्ञानी और योगी है। इन तीनों की त्रिपुटी से निकली रामकथा जीवन की झंझाओं को उचित अवसरों पर परिभाषित करती प्रतीत होती है।
महाराज दशरथ संतानहीन है उनको जब इसकी चिंता होती है तब अपने गुरू वशिष्ठ से अपने मन की इस पीड़ा को व्यक्त करते है और वशिष्ठ उनको एक विशेष प्रकार के यज्ञ के आयोजन की सलाह देते है। श्रंृगी ऋषि के आचार्यत्व में वस्ती जिले के वर्तमान मखौड़ा गांव में वह पुत्र्येष्टी यज्ञ सम्पन्न होता है। यज्ञ देव स्वयं यज्ञ प्रसाद (चरू) लेकर प्रकट होते हैं और महाराज दशरथ को उसे अपनी रानियों में बांटने को दे देते हैं । महाराज दशरथ चरू का आधा भाग कौशल्या को और आधा कैकयी को देते है दोनो रानियां अपने हिस्से की चरू से आधा आधा निकाल कर सबसे छोटी रानी सुमित्रा को दे देतीं हैं इस तरह राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन के जन्म की कथा शुरू होती है।
उधर मिथिला में अनावृष्टि के कारण घोर आकाल है प्रजा भूख प्यास से त्रस्त है ज्ञान साधना में रत जनक को जब अपनी प्रजा की पीड़ा का पता लगता है तो विद्वान पंडितों से इस संकट के समाधान का उपाय पूछते है। विद्वान पंडित उन्हें सलाह देते है कि राजा यदि स्वयं हल चलावे तो वृष्टि हो सकती है और इस संकट से प्रजा को मुक्त किया जा सकता है राजा जनक हल चलाते हंै उनका हल एक घड़े से टकराता है घड़ा फूटता है और उससे एक कन्या के रूप में ज्योति प्रकट होती है।
इस तरह भगवान राम जहां धर्म साधना से प्रकट होते है वहीं भगवती सीता धरती की सेवा से प्रकट होती है। भगवान राम के प्राकटय के लिये वैदिक विधि से धर्म का अनुष्ठान किया जाता है और भगवती सीता के प्राकटय के लिये सत्ता का अभिमान छोड़ कर साधारण श्रमिक की तरह जब श्रम साधना होती है तब धरती सीता के रूप में प्रकट होती है। इस तरह कहा जा सकता है कि श्री सीताराम प्रकट रूप से धर्म और धरती के रूप है। बाल्मीकि ने भगवान राम को धर्म विग्रह कहा भी उस समय जब विश्व रावण जैसे अत्याचारी से आतंकित था और उसके अत्याचारों की पीड़ा से ऋषि, मुनि, नर, बानर, पशु पक्षी तथा प्रकृति के सभी अवयव पीड़ित और प्रभावित थे। उसको रोकने में तत्कालीन राजाओं का बल और पौरूष व्यर्थ साबित हो रहा था। धरती से लेकर स्वर्ग तक रावण के इस आतंकवादी प्रवृति को रोकने की चिंता हो रही थी बहुविधि विचार के बाद ऋषियों और मुनियों ने यह निर्णय किया कि जब तक धर्म और धरती का मिलन नहीं होगा धर्म और धरती के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं होगा तब तक इस अमानवीय ताकत को रोका नहीं जा सकता। धर्म स्वरूप राम धरती स्वरूपा सीता का मिलन कथा का एक हिस्सा मात्र नहीं है वह आज भी लोकजीवन का नित्य सत्य है। धरती पर अगर रामराज्य लाना है तो धरती और धर्म के संयोग को सुदृढ़ करना होगा। श्रम और साधना दोनों के बीच एक अध्यात्मिक जोड़ कायम करना होगा। श्रम केवल श्रम न हो वह धर्म के लिये साधना हो और धर्म केवल शास्त्रों और ग्रन्थों तक न रहकर धरती के सभी क्रिया कलापों का नियामक बने तो एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है कि जहां आतंक का कुशासन न होकर समृद्धि का शुसान स्थापित होगा।
आज सीता नवमी के इस अवसर पर धरती की पुत्री सीता को और धर्म पुत्र राम को हम नमन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि भारत के इस पुण्य क्षेत्र में अनादि काल से चला आ रहा धरती और धर्म का यह संयोग श्री सीताराम जी के रूप में प्राप्त रहेगा।